हर युग में साधना बदल जाती है यौगिक क्रियाएं बदल जाती हैं। सतयुग में उस युग का योग था,त्रेता में त्रेता का योग था, द्वापर में द्वापर का योग था, कलयुग में कलयुग का योग आपको करना होगा। जैसे-जैसे युग का परिवर्तन होता है योग क्रियाएँ भी बदल जाती
हैं। अब आप चाहें कि सतयुग, त्रेता और द्वापर का योग करें तो नहीं कर सकते अब वे योग आप से हो ही नहीं सकते हैं क्योंकि वे बड़े कठिन योग होते थे और जरा सी चूक हो गई तो अंग भंग भी हो सकता था। उन योगों के लिए शारीरिक बल, मानसिक बल और बहुत समय
की जरूरत होती थी। अब न तो आपके पास शारीरिक बल है, न मानसिक बल है और न हीं आपके पास समय ही है। आप अपने छोटे समय में कलयुग का योग सुरत शब्द योग, नाम योग कर सकते हो।
- शाकाहारी पत्रिका, 14 अगस्त 1985
नए लोगों के लिए बाबा जयगुरुदेव जी के महत्वपूर्ण वचन
सब लोग शाकाहारी हो जाओ। तुम्हारे दादे परदादे शाकाहारी थे। हमें याद है की पहले जब किसी गन्दी वस्तु का कोई नाम लेता था तो सुनने वाले दस बार थूकते थे की ये क्या नाम ले लिया। हमें यह भी याद है की कभी जब पास से मुर्गी गुजर जाती थी तो माताएं बच्चों
को नहलाती थी। यह तो तीस पैतीस सालों में आप ने खान-पान बिगाड़ दिया।
दूसरों पर विश्वास करके आपने शरीर को रोगी बना दिया, अशुद्ध आहार अपना लिया, खान-पान आचार-विचार सब ख़राब कर दिया। अब आप रोगों से घिर गए।
सभी बुराइयाँ शराब से आती हैं। ऐसे लोगों के साथ मत बैठो वरना भयंकर छूत लग जाएगी। मनुष्य बनना है तो शराब का नशा त्याग दो नहीं तो धर्म कर्म सब चला जायेगा।
ये मनुष्य शरीर किराये का मकान है। श्वासों की पूँजी गिनकर मिली है, ख़त्म होते ही वो ये मकान खाली करा लेगा और आपका इकठ्ठा किया हुआ सारा सामान यही पड़ा रह जाएगा। ये मनुष्य शरीर बड़ा ही अनमोल है। इसी शरीर में हरि का द्वार है। संतों और महात्माओं के पास जाओ, उनके वचन सुनो। उनसे नाम भेद लेकर भजन करो। और समय रहते अपना काम पूरा कर लो।